प्राइवेट नौकरी | Private Naukari
प्राइवेट नौकरी
( Private naukari )
यूं लगता है बंद पिंजरा उस पंछी को तड़पाता है।
यूं लगता है उमड़ा सावन फिर से लौट जाता है।
यूं लगता है लटक रही हो ज्यों चांदी की तलवार।
संभल संभल कर चलते जाने कब हो जाए वार।
यूं लगता है स्वाभिमान का कत्ल नहीं हो जाए।
कड़ा परिश्रम करें फिर भी आंखें लाल दिखाए।
यूं लगता है सेवाभाव से शायद सुख मिल जाते।
निजी नौकरी निजी मामला वो कैसे टांग अड़ाते।
यूं लगता किरदार हमारा धूमिल नहीं हो जाए।
रंगमंच का पर्दा जाने कब आकर गिर जाए।
स्थाई सरकार नहीं है बदलावों भरी बयार चली।
एक नौकरी छूट गई तो समझ दूसरी तूझे मिली।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )