इक आह उभरती सीने में
( Ek aah ubharti seene mein )
इक आह उभरती सीने में,
और दर्द भी दिल में होता है।
मन की पीर ढल शब्दों में,
कविता का सृजन होता है।
दिल की बातें दिल को छूती,
कंठो से सरिता बहती है।
अधरों की मुस्कान मोहक,
शब्द शब्द में रहती है।
दिल का दर्द लब से होकर,
जब जुबां पे आता है।
मन की पीर कविता रचती।
युगो युगो से नाता है।
धड़कने सब राग सुनाती,
अधर थिरकते साथ बन।
शब्द सुरीले प्यारे-प्यारे,
महकते अनुराग बन।
काव्य के मोती बन गुंजे,
सुर से सरगम तान हो।
मन के भाव कलम लिखे,
हर शब्द शब्द मुस्कान हो।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )