बाजार
बाजार

बाजार

( Bazaar )

गहन तम में उजाले कि,क्यो मुझसे बात करते हो।
अन्धेरों मे ही जब मुझसे वफा की, बात करते हो।

 

नही पहचान पाते हो जब मुझे, दिन के उजालों में,
मोहब्बत वासना है फिर भी क्यो जज्बात कहते हो।

 

ये महफिल है मोहब्बत की,शंमा हर रात जलती है।
सुलगते  जिस्म  पर  हर रोज ही, अंगार  जलते है।

 

सभी  परवाने बनकर आते है, हसरत  जगा  करके,
वो बुझ जाते है पर हम लोग तो, हर रोज जलते है।

 

मोहब्बत  ने  ही  लाया है,  हमें इन  तंग गलियों में।
छला  विश्वास  अपनो  ने  ही बेचा, तंग  गलियों में।

 

लगा  है हुस्न का बाजार  जिसमें, जिस्म बिकते है,
यहाँ   आते   है  ओहदेदार  गिरने, तंग  गलियों  में।

 

खुशी  हम  बेचते है रोज ही, हर  रात अश्कों से।
उजालों ने  दिया  है  नफरतो  का  जख्म वर्षो से।

 

जो दिन मे थूकते है रात भर  कदमों  पे  गिरते है।
सुनों  हुंकार  मंडी  जिस्म  का, ऐसा है सदियों से।

 

यहाँ पर घुँघरूओ के ताल में, चित्कार होते है।
जहाँ  पर  रूप  सजते है, मगर बेजार होते है।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

 

??
शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

यह भी पढ़ें : 

Best Hindi Kavita | Best Hindi Poetry -मन की बातें

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here