मेरे अहसास | Mere Ehsaas
मेरे अहसास
( Mere ehsaas )
एक मुद्दत से उसने मेरा हाल नहीं पूछा
कहते हैं लफ़्ज़ों की बरसात नहीं करता
एक उम्र ही गुजर गई उससे मिले बगैर
सुना है अब वो किसी से बात नही करता
वो एक खिडकी जो सारे शहर में चर्चा थी
कहते हैं अब परिंदा वहाँ ठिकाना नहीं करता
जो पढ़ा करता था इश्क की तमाम तहरीरे
सुना है वो किसी से मुलाकात नहीं करता
उस शख्स की जानिब चले आए थे महफिल में
कहते हैं उस का दिन और रात नहीं कटता
जो हाथ पकडकर छोडा नहीं करता था कभी
सुना है उसे अकेले में अब डर नहीं लगता
.मुसाफिर से हाथ मिलाकर चलता था
मोहब्बत में लिख दिया करता था गजले सारी
जिससे लोगो नें सीखा था जिंदा रहना
सुना है वो काफिर अब सजदा नहीं करता
लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून