मुझे खुशी है की मेरा कोई अपना नहीं है
बाक़ी ज़माना सा तो नहीं खलता है मुझे तू
किसने कहा की मुझसे बेगाना है मुझे तू
मुझे खुशी है की मेरा कोई अपना नहीं है
ऐ-खुदा क्यों इस कदर चाहता है मुझे तू
तेरे और मेरे अलावा बचा नहीं है कोई
बर्बाद हूँ ही अब है तो अपना है मुझे तू
चैन कहाँ पड़ता है, शाम गुज़रता कहाँ है
खैर बात ही बात में बड़ा सताता है मुझे तू
मुहब्बत निभाया नहीं, बस किया जाता है
अफ़सोस की हर रोज यह बताता है मुझे तू
मुझे कुछ इल्म-ए-ज़िन्दगी चाहिए है ‘अनंत’
आ मिल उसके बाद जैसे रोज मिलता है मुझे तू
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )
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