कोई पेड़ प्यासा न मरे | Koi ped pyasa na mare
कोई पेड़ प्यासा न मरे!
( Koi ped pyasa na mare )
भटके लोगों को रास्ते पर लाना पड़ता है,
वनस्पतियों को जेवर पहनाना पड़ता है।
बिना फूल के बहार आ ही नहीं सकती,
तितलियों को भी बाग में लाना पड़ता है।
कोई पेड़ प्यासा न मरे,समझो जगवालों,
बादलों के हाथ मेंहदी लगाना पड़ता है।
ख्वाबों की मरम्मत तुम कर पाओगे तब,
इसके लिए वृक्षारोपण करना पड़ता है।
जल-जंगल- जमीं ये बचाने से ही बचेंगे,
इनसे रिश्ता चारों तरफ से जोड़ना पड़ता है।
इंसान की ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं,
चाट जाएगी धूप, सभी को बताना पड़ता है।
न परियाँ उतरेंगी और न ही परिन्दे उड़ेंगे,
दिमाग पर जमी काई को धोना पड़ता है।
नहाएँगे पीपल के पत्ते बारिश के पानी से,
बादलों को नदी, तालाब भरना पड़ता है।
अगर वृक्ष काटे तो हम तुमसे बात नहीं करेंगे,
प्रदूषण के हाथ से तलवार गिराना पड़ता है।
मत काटो कोई कृपाण से इस बारिश को,
कभी-कभी फिजा से मिलके रोना पड़ता है।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई