यह ज़िन्दगी | Ghazal Zindagi
“यह ज़िन्दगी”
( Yah zindagi )
भटक कर ना जाने कहीं दमी रह गई
चलकर भी यह ज़िन्दगी थमी रह गई।
कहा तो बहुत मगर सुना नहीं गया
जाने शब्दों में मेरे कहाँ कमी रह गई।
उसकी ख्वाहिशों की बात करते सब
मेरे जज्बातों में तो बस नमी रह गई।
जहाँ चलते रहे बेबाक बातों के दौर
वहाँ महज़ दिखावे की जमी रह गई।
वो मुमकिन ना हो पाया जो तय था
मंज़िलों की राहों में चंद तमी रह गई।
शैली भागवत ‘आस
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका
( इंदौर )