
आशना होता
( Ashna hota )
अगर मेरी हक़ीक़त से ज़रा भी आशना होता
यक़ीनन तू भी मेरे रंग ही में ढल गया होता
लुटा देता मैं अपनी ज़िन्दगी की हर ख़ुशी तुझ पर
मुहब्बत से मुझे अपना कभी तो कह दिया होता
ग़ुरूर-ओ-नाज़ नखरे गर दिखाना छोड़ देते तुम
हमारे प्यार का आलम ही फिर तो दूसरा होता
यही है शुक्र बिजली से ख़फ़ा थीं आँधियाँ वर्ना
न जाने मैं कहाँ खाक-ए-नशेमन ढूँढता होता
कोई तदबीर करते राहे-मंज़िल ढूँढ ही लेते
यक़ीं इक पल जो अपने आप पर हमने किया होता
इसी पथराव से मुमकिन था मेरी मौत हो जाती
अगर इन पत्थरों पे नाम भी तेरा लिखा होता
बहुत था बोझ ज़ंजीरों का मेरे पाऊँ में साग़र
सफ़र वर्ना कभी का ख़त्म मैंने कर लिया होता
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
यह भी पढ़ें:-