अगर साकी | Agar Saqi
अगर साकी
( Agar Saqi )
बता देते तो अच्छा था कहाँ तेरी नज़र साकी
तो फिर हम झट से कर देते पियाला भी उधर साकी ॥
दिया ना जाम वो जिसकी तमन्ना थी मिरे दिल में
गिला क्या अब तिरे मय का नहीं होगा असर साकी ॥
छलक जाता जो पैमाना , क़यामत हो गई होती
तभी ओढ़ी है ख़ामोशी ,छुपाऊं क्यों नज़र साकी ॥
अहल ये दर-ब-दर ऐसे, भटकती रूह ना मेरी
इशारो में बता देते पता-ए-रूह गर साकी ॥
जलाये थी शम–ए-उम्मीद आमद भी यक़ीनी थी
भुलाई राह-ए-उल्फ़त ,हो नहीं तुम मो’तबर साकी ॥
जफ़ा जो ना किया होता, #न मरते वक़्त से पहले
अग़रचे, है नज़ारा रब, तिरे में हर पहर साकी ॥
हुम्हे एहसास ‘याशी‘ है नहीं, इस बे-वफ़ाई का
यक़ीनन एक दिन होगा तुम्हारा चैन खर साकी ॥
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा,गोवा
अहल : योग्य,लायक
शम–ए-उम्मीद : उम्मीद का दिया
आमद : आगमन, आना
मोतबर : सम्मान के काबिल
खर: टूट जाना
अगरचे: फिरभी
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