Sath

साथ | Sath

साथ

( Sath ) 

 

वह साथ ही तुम्हे कभी साथ नही देता
जिस साथ मे साथ की निजी लालसा हो

दीवार कभी भी इतनी ऊंची न उठाओ की
पड़ोसी के चीखने की आवाज सुनाई न दे

ऊंचाई के भी हर पत्थर तो पूजे नही जाते
तलहटी की शिलाओं मे भी भगवान बसते हैं

तुम ही रहोगे सिमटकर जब खुद मे ही
तब बाहर का विस्तार भी तुमतक नही होगा

हांथ भी मिलाओ अगर धो पोंछ लिया करो
उसे भी तो अपने हांथ की फिक्र होगी ही

अनुमान न लगाओ गैर की वफादारी का
वफादारी मे कभी तुम भी तो मिल लिया करो

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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