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टूटे हुए दिल की दास्तान हूं मैं
उजड़े हुए चमन का बागबान हूं मैं
खिले तो फुल मगर , सब बिखर गए
खड़ा पतझड़ सा ,नादान रह गया हूं मैं

चले तो थे सांस मिलकर कई लोग
रह गया तन्हा छूटा हुआ कारवां हूं मैं
बट गई मंजिले भी उनकी अपनी
हारी हुई उम्मीद का बचा गुमान हूँ मैं

करें नाज किस फूल की महक पर
आंखों में जलता हुआ एक धुआँ हूं मैं
कोहरे के बीच खड़ा हूँ , जैसे ऊँचे टीले पर
तलहटी में लुढ़कता हुआ टुकड़ा सा हूं मैं

मुझे ही पता नहीं कौन हूं कहां हूं मैं
कह नहीं पाऊं की जीता या हारा हूं मैं
रहा गगन पर कभी अब टूटा हुआ तारा हूं मैं
खड़ा राह में खड़ा खुद का ही सहारा हूं मैं

जीत कर भी खेल में बाजी हारा हूं मैं
कहते हैं लोग अभी भी मुझे, प्यारा हूं मैं
करता हूं शुक्र अदा कि अभी जिंदा हूं मैं
हारा नहीं जीवन में कुछ ही थका हूं मैं

टूटे हुए दिल की दास्ताँ हूँ मैं
उजड़े हुए चमन का बाग़बा हूँ मैं

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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