धेनु की करुण पुकार
धेनु की करुण पुकार
मैं धेनु अभागन तड़प रही कोई तो मेरी रक्षा कर
मैं घूम रही मारे-मारे अब तो अनुग्रह की वर्षा कर
मुझे पेट की कोई पड़ी नहीं बस प्राण हमारा तुम बख्शो
मेरी मजबूरी को जान स्वयं मानव मेरी तुम लाज रखो
मुझे त्रेता द्वापर में पूजा माँ की गरिमा पाई थी
बन कामधेनु नभ में भी देवों की लाज बचाई थी
कितनों को जीवन दान दिया औषधि का भी वरदान दिया
पंचगव्य चरणा मृत देकर उस लोक का बेड़ा पार किया
मोहन ने मुझे चराया था नूतन नामों से बुलाया था
पर हाय रे मेरी किस्मत ऐसी मुझसे तूं क्यों रूठ गई
एक ब्राह्मण के घर की रोटी अधिकार से मेरे छूट गई||
आनंद त्रिपाठी “आतुर “
(मऊगंज म. प्र.)