जिंदगी | Zindagi
जिंदगी
( Zindagi )
जिंदगी की भाग दौड़ में कब
जिंदगी की सुबह और शाम हो गई
पता ही नहीं चला।
कल तक जिन मैदान में खेला
करते थे
कब वो मैदानों मैं बड़े-बड़े मॉल
बन गए
पता ही नहीं चला ।
कब अपने सपनों के लिए गांव
शहर देश छोड़ दिया
माता-पिता को व अपना घर
छोड़ दिया
पता ही नहीं चला।
वो बेखौफ बचपन की यादें ,
रुह आज भी उसी बचपन में
अटकी, कब शरीर जवान हो गया
पता ही नहीं चला।
नंगे पैर पैदल दौड़ने वाला बच्चा
बाइक, कार चलाने लग गया
पता ही नहीं चला।
जिंदगी की हर सांस जीने वाला
कब जिंदगी जीना भूल गया
पता ही नहीं चला।
मीठी नींद सो रहा था मां की गोद में
कब चैन भरी नींद उड़ गई
पता ही नहीं चला।
एक जमाना था जब दोस्तों के साथ
खूब हंसी ठिठौली किया करते थे
अब वो कहां खो गए
पता ही नहीं चला।
जिम्मेदारी के बोझ से कब
जिम्मेदार बन गए हम
पता ही नहीं चला।
पूरे परिवार के साथ रहते थे
कब अकेले हो गए हम
पता ही नहीं चला।
मीलो का सफर कब तय कर लिया
जिंदगी का सफर कब रुक गया
पता ही नहीं चला।
लता सेन
इंदौर ( मध्य प्रदेश )