कौन किसका | Kavita Kon Kiska
कौन किसका
( Kon Kiska )
रिश्तों का अर्थ देखो
कैसे लोग भूल गये है।
होते क्या थे रिश्तें
क्या समझाए अब उनको।
कितनी आत्मीयता होती थी
सभी के दिलों में।
मिलने जुलने की तो छोड़ों
आँखें मिलाने से डरते है।।
कौन किस का क्या है
किसको सोचने का वक्त है।
मैं बीबी बच्चें बस साथ है
यही हमारी अब दुनियां है।
इसके अलावा किसी को,
कुछ भी दिखता नही हैं।
इसलिए इनकी दुनियां रह गई
चार दीवार के अंदर तक।।
विचित्र समय आ गया है
इंसान इंसान से भाग रहा है।
बड़ा आदमी क्यों न हो
पर सोच छोटी हो गई है।
न जिंदा में अब मतलब है
और न मौत में उसे मतलब ।
मानों इंसानियत अब सबकी
देखों मर चुकी है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई