ahad o paiman

अ़हदो पैमान की स़दाक़त को

अ़हदो पैमान की स़दाक़त को

अ़हदो पैमान की स़दाक़त को।
आज़मा ले मिरी मुह़ब्बत को।

यूं न पर्दा हटा ह़सीं रुख़ से।
क़ैद रहने दे इस क़यामत को।

उनकी नज़रों से पी ले जो वाइ़ज़।
भूल जाए वो राहे जन्नत को।

आ गई नींद अब मुझे दिलबर।
अब न आना मिरी अ़यादत को।

पैरवी जिसने की बुज़ुर्गों की।
उसने ज़िन्दा रखा रिवायत को।

चन्द सिक्कों में बिक गई अल्लाह।
हाय क्या हो गया अ़दालत को।

देख कर रो पड़े मिरी ह़ालत।
वो फ़राज़ आए जो अ़यादत को।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

यह भी पढ़ें:-

इस ह़िमाक़त में क्या है | Ghazal Is Himaqat Mein Kya Hai

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *