हमें आपसे | Ghazal Hame Aapse
हमें आपसे
( Hame Aapse )
हमें आपसे अब शिक़ायत नही है ।
मगर अब किसी से मुहब्बत नही है ।।१
झुके सिर हमारा किसी नाज़नी पे ।
अभी इस जहाँ में वो सूरत नहीं है ।।२
जिसे चाहने में भुलाया खुदी को ।
वही आज कहता हकीकत नही है ।।३
कसम आज अपनी उसे देकर देखो ।
जिसके लिए दिल में नफ़रत नही है ।।४
बहुत चोट खाए हुए हो प्रखर तुम ।
बता दो उसे भी कि उल्फ़त नहीं है ।।५
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )