महक जिसकी | Mahak Jiski
महक जिसकी
( Mahak Jiski )
नशे में है जवानी लिख रही हूँ
हुआ है ख़ून पानी लिख रही हूँ
महक जिसकी फ़िज़ाओं में बसी है
वही गुल रात रानी लिख रही हूँ
उजाड़ी जिसने मेरे दिल की बस्ती
उसी की शादमानी लिख रही हूँ
वफ़ादारी जो शिद्दत से निभा लें
वहीं हैं खानदानी लिख रही हूँ
जला डाला मकां जिसने ही मेरा
बला वो आसमानी लिख रही हूँ
नहीं जयचंद सा गद्दार जिसमें
वफ़ा की वो कहानी लिख रही हूँ
कई धोख़े ही खा कर ज़िन्दगी में
हुई मीना सयानी लिख रही हूँ
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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