यादों के बसेरों में कुछ भुला.. कुछ याद रहा
1992 से अन्ना उभरने शुरू हुए थे.. अकोला में दंगे के बाद जैन समाज के कुछ वरिष्ठ लोग दंगाग्रस्त क्षेत्र का निरीक्षण करने आए थे तब साथ मे अन्ना भी थे और उनको तब मैं बहुत अधिक नही जानता था।
हम सब लोग चल रहे थे तो मैने अन्ना जी को कहा कि आप उधर एक तरफ साइड में चलो काका.. इधर भीड़ में कही गिर न जाओ.. तब मैं भला कहा जानता था कि जिस से मैं बात कर रहा हु वह एक दिन पूरे भारत की तस्वीर बदल देंगा।
बाद में अण्णा जी की सक्रियता बढ़ी ओर अकोला आने पर मुझे कार्यकम में उपस्थित रहने का निमंत्रण दिया.. मैं गया भी.. काफी बाते भी हुई.. मगर शायद राजनीति मेरे बस में नही थी। मैं यह भांप ही नही पाया कि जो आज मुझे स्वयं हो कर बुला रहा है।
आज जो कि सरलता से मेरे लिए उपलब्ध है उस से जुड़ कर मैं कुछ ऊंचे मुकाम हासिल कर सकता हु.. अन्ना में मुझे कुछ खास विशेषताएं नजर भी नही आई.. मेरा सोचना यह था कि एक बुजुर्ग व्यक्ति भला क्या नए सोपानों तक पहुचेंगा ?
मगर मैं गलत था.. अन्ना जी ने इतिहास रचा.. अन्ना जी ने भूतों न भाविष्यति वाली बात को चरितार्थ कर दिखाया.. एक आम मनुष्य अरविंद केजरीवाल को ऊंचे मुकाम तक पहुचाया.. कभी कभी सोचता हूं कि अन्ना जी से जुड़ा रहता तो आज मैं किन हालातो में रहता ?
मगर फिर तुरंत यथास्थिति में आ जाता हूं कि यही होता जहा की अभी हु.. क्योकि राजनीति के पैतरे मुझे नही आते.. राजनीति में जाना यह एक समाजसेवा का ही अंग है यह धारणा मेरी अब नही रही है और मैं इसी में बंध कर जाता तो फिर हासिये में आने में कुछ अधिक समय नही लगता।
सच, ईमानदारी जैसे बाते राजनीति में मात्र हास्य के लिए ही कही जाती है.. असल राजनीति इस से कही बहुत जुदा है.. उस राजनीति के लिए मेरा व्यक्तित्व मेल नही खाता या यूं भी कह सकते हैं कि मेरा वजूद राजनीतिक पैतरेबाजी के अनुकूल नही है।
मैं सिर्फ रमेश तोरावत जैन हो सकता हु.. इस नाम के साथ बदमाश, चोर, देश को लूटने वाले तमगे अच्छे नही लगेंगे.. राजनीतिक सुचिता बोलचाल की भाषा मे ही है.. यदा कदा ही कभी कोई आम लोगो मे से अन्ना जी बनकर चमक सकता है वरना धन, राजनीतिक विरासत ओर धुरंधर नेताओ के आशीर्वाद के बिना यहा कोई जमीन नही बना सकता।
राजनीति के आम कार्यकर्ता मात्र चादर बिछाने के काम आते हैं ओर परिवार वाद की वजह से वे कभी भी बड़े पदों तक नही पहुच पाते हैं.. यह बात मैं सालों पहले ही समझ गया था।
बड़े नेताओं का अभिवादन करने में मुझे कोई दिक्कत नही है मगर उनकी जी हजूरी ओर चापलूसी करना मेरी फितरत नही.. कभी कुछ कार्यक्रम मैने किये भी थे और कुछ नेताओं को मंच भी दिया और वे भी सिर्फ इसलिए मुझ से जुड़ने की चाहत रखे हुए थे कि जैन वोट उनके सुरक्षित रहे।
एक बार तो भरे हुए सभा मण्डप में मैने एक केंद्रीय राज्य मंत्री, विधायक ( यहाँ नाम जानने की आप इच्छा न रखे ) और पार्टी के कुछ बड़े पदाधिकारियों को खुप आड़े हाथ लिया था।
मैने अपने उदबोधन में साफ साफ कहा कि आप सिर्फ हमारे वोटो को देखते हो मगर कभी हमारे जैनियों को चुनाव में टिकट नही देते हो.. मेरी बातों से वे सब असहज हो गए थे और फिर कहा कि आगे से वे ध्यान रखेंगे और जैनियों को भी चुनाव में प्रतिनिधित्व देंगे।
इस बात को करीब चार वर्ष हो रहे हैं मगर कही कुछ नही हुआ.. किसी जैनी को कोई टिकट नही मिला.. तो कुछ जमा खर्च यही रहा कि राजनीति सभी के बूते की बात नही है.. यह खूब पैसा मांगती है और कुछ हद तक चाटुकारिता.. मेरे पास यह दोनों नही है.. अनेक अनेक धन्यवाद।
रमेश तोरावत जैन
अकोला
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