Maa ka Sansmaran
Maa ka Sansmaran

संस्मरण: १

मां के जीवन के बारे में कई दिनों से लिखने का प्रयास कर रहा हूं परंतु सोचता हूं की मां के जीवन को कहां से शुरू करूं और कहां ख़त्म । क्योंकि मां तो शाश्वत है । जिसका ना आदि है ना अंत ।

मां की ममता तो शिशु के गर्भधारण से ही प्रारंभ होकर जब तक वह शिशु धरती पर विचरण करता है तब तक रहता है। और उसके ना रहने पर भी आंसुओं से आंचल भींगता रहता है।

मां जो 9 माह तक अपने ज़ेहन से चिपकाए शिशु का पोषण करती है, मां जो शिशु को जन्म देने की खुशी में पहाड़ जैसे दर्द को सहज में सह लेती हैं ।

क्योंकि मैंने सुना है कि किसी बच्चे का जन्म जब होता है तो मां के प्राण ही निकल जाते हैं या कई बार मां ऑपरेशन कराकर अपने प्राण के टुकड़े को जन्म देती है।

या लिखूं उस मां के बारे में जो बच्चे की हर आहट पर सजग रहती है, बच्चे का सोना मां का सोना ,बच्चे का जागना मां का जागना है , अपने निज जीवन की जैसे कोई चाहत ही ना बची हो ।सारी चाहते बच्चों में समाहित हो गई हो ,मां जो बच्चों की एक किलकारी सुनने के लिए दुखों के सागर को पीने के लिए सतत तैयार रहती।

संस्मरण: २

मेरी मां ने स्कूली कोई शिक्षा नहीं पाई परंतु व्यवहारिक ज्ञान की भंडार है । जब कोई भी परिवार में समस्या आती है मां ने धैर्य पूर्वक उसका सामना किया है ।

मैं जानता हूं कि आप मेरे लिखे शब्दों को पढ़ नहीं सकती परंतु हृदय से निकले भावों को जरूर अनुभव करती होगी । बचपन में जब मैं देखता था कि पिताजी के न रहने पर मां कितनी कठिनाइयों से हम सब भाई बहनों को पालन किया ।

मुझे नहीं मालूम की मां के जीवन में खुशी के छड़ कब थे। एक इसी आशा से की बच्चे बड़े होंगे तो जीवन में कुछ सुख एवं शांति आएगी परंतु जैसे लगता है कि मां सुख लेकर ही नहीं आई है।

फिर भी बच्चों का कहीं नौकरी लग जाए तो परिवार में खुशियां आएं बस इसी सहारे जिंदगी काटती जा रही है। मां तू नहीं जानती कि तेरी जैसी सहज और सरल माताएं ही महापुरुषों को जन्म दे सकती है। मां आज नहीं है लेकिन उनके दिखाएं मार्ग आज भी जीवन में पद प्रदर्शन का कार्य कर रहे हैं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें:-

निकम्मा | Nikamma

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here