मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

नभ,जल और धरित्री का, अंधियारा छट जाए
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

पुनि स्नेहिल गंगा पर्वत शिलाओं से निकल जाए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

कभी भटकाव ना किसी की जिन्दगी में आए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

सत्य-न्याय की हवा, जल,थल,नभ में फैल जाए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।

अमीरों के रोशनदान नहीं, गरीब कुटिया सजाए ,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

पटाखों से नहीं,श्री राम-आगमन में दीप झिलमिलाए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

स्वास्थ्य के लिए हो सुदृढ़, वायु प्रदूषण न फैलाए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

घर-आँगन का कोना-कोना, रसीले प्रेम से सजाए,
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

आओ इस बार दिवाली कुछ अलग-सा मनाएं
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

हर्ष से हर्षित होकर सभी जग को खूब जगमगाएं
सदैव ऐसे मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

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