सुराही जाम टकराने लगे हैं

सुराही जाम टकराने लगे हैं

नज़र मंज़र ये क्या आने लगे हैं
चमन में फूल मुरझाने लगे हैं

सियासत चल रही है ख़ूब उनकी
जो ख़ाबों से ही बहलाने लगे हैं

वज़ीरों की सियासत देखियेगा
बदलकर केचुली आने लगे हैं

बनाकर गीदड़ों ने फौज अपनी
वो शेरों पर ही गुर्राने लगे हैं

भिखारी बन के जो आये थे कल ही
नज़र मिलते ही बलखाने लगे हैं

गिरे जब अश्क़ आँखों से हमारी
वो दामन को ही सरकाने लगे हैं

हमारे क़ुर्ब की ख़ुश्बू जो पहुँची
पड़ोसी भी ग़ज़ल गाने लगे हैं

क़दम रखते ही साग़र अन्जुमन में
सुराही जाम टकराने लगे हैं

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

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