हर पहर तन्हा

हर पहर तन्हा | Har Pahar Tanha

हर पहर तन्हा

( Har Pahar Tanha )

उनकी फ़ुर्क़त में हर पहर तन्हा।
दिल ये रोता है किस क़दर तन्हा।

एक दूजे की राह तकते हैं।
हम इधर और वो उधर तन्हा।

उनकी अदना सी एक चाहत पर।
ज़ीस्त कर दी गयी बसर तन्हा।

हम भी कमरे में क़ैद रहते हैं।
वो भी करते हैं अब गुज़र तन्हा।

आंच लगती है इश्क़ की पलभर।
दिल सुलगता है उम्र भर तन्हा।

ख़ौफ़ खाते हैं क़ाफ़िले जिससे।
हमने काटा है वो सफ़र तन्हा।

पूछ मत ह़ाले-क़ल्ब मेह़फ़िल में।
बेख़बर ले कभी ख़बर तन्हा।

क्यों न लगता फ़राज़ दिल उससे।
मेरे जैसा ही था क़मर तन्हा।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

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