डॉ. बीना सिंह “रागी” की कविताएं | Dr. Beena  Singh Raggi Poetry

मैं मां हूं


कारी कारी बदरी सन सनन बहती हवा शीतल पुरवाई हूं
हां साब मैं मां हूं हंसी-खुशी के संग संग दर्द और तन्हाई हूं
नेह निमंत्रण देकर रिश्तों को बांधे रखा हमने
फर्ज समझ बोझ को अपने दोनों कांधे रखा हमने
जननी हूं धात्री हूं खुदा रब्बा गाड भगवन की परछाई हूं
हां साब
चंचल चपल दौड़ती भागती चिंता की तरंग
निश दिन भेदती तीर आयु का हमारा अंग अंग
हूं सरिता सी कल कल झरना सी झर झर
तो कभी कभी समंदर की गहराई हूं
हां साब
संतान के सुखे कंठ को अपने स्तन के दूध से सींचा हमने
मुफलिसी में खून की जान बचाने को खुद को कोठे पर बेचा हमने
रंभा मेनका उर्वशी सावित्री राधा मीरा के संग संग सीता माई हूं
हां साब मैं मां हूं हंसी खुशी के संग संग दर्द और तन्हाई हूं
लोग कहते हैं मैं ही खुदा रब्बा गॉड भगवान की परछाई हूं

Dr. Beena Singh

डॉ बीना सिंह “रागी”

( छत्तीसगढ़ )

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