कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में विश्व उर्दू दिवस का आयोजन, अल्लामा इक़बाल की जयंती पर गूंजा गंगा-जमुनी तहजीब का संदेश
आज कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भाषा एवं कला संकाय के अन्तर्गत चल रहे उर्दू विभाग ने विश्व उर्दू दिवस का आयोजन किया यह दिवस अल्लामा इक़बाल की जयंती पर मनाया जाता है कार्यक्रम का मंच संचालन उर्दू विभाग के शिक्षक मनजीत सिंह ने किया। गंगा जमुना तहजीब की पहचान है उर्दू भाषा पर वक्तव्य हुआ।
इस दौरान मुख्य अतिथि डा पुष्पा रानी अधिष्ठात्री भाषा एवं कला संकाय ने उर्दू का महत्व बताते हुए कहा कि,भाषा के प्रति लोगों को जागरूक किया। उन्होंने बताया कि ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गीत लिखने वाले डॉ. सर अल्लामा मुहम्मद इकबाल के जन्मदिवस के अवसर पर हर साल 9 नवंबर को पूरी दुनिया में विश्व उर्दू दिवस मनाया जाता है।
उन्होंने बताया कि उर्दू एक भाषा के साथ-साथ तहजीब (संस्कृति) है। उर्दू भाषा हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति की पहचान है। हमें उर्दू के बढ़ावे के लिए इसका ज्यादा से ज्यादा दैनिक जीवन में उपयोग करना चाहिए।
आज नौ नवंबर है अर्थात विश्व उर्दू दिवस. यह मौका है सुप्रसिद्ध शायर अल्लामा इकबाल की जयंती का. वास्तव में इंसान ने जब अल्फाज सीखे, तो ज़ुबान पैदा हुई. दुनिया के हर हिस्से में अलग जुबानें वजूद में आयीं।
कई ऐसे मुल्क हैं, जहां एक से ज्यादा जुबानें इस्तेमाल की जाती हैं. इस मामले में भारत सब से अलग और सब से खास मुकाम रखता है। हमारी हजारों वर्षों की शानदार तारीख अनगिनत जुबानों का फसाना सुनाती है। उर्दू ऐसी ही एक तारीखी ज़ुबान है, जिसने गुजरे हुए जमानों से लेकर अब तक का एक सुनहरा सफर तय किया है
वहीं जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग आये डॉ आबिद अली ने कहा कि उर्दू को कभी लश्करी ज़ुबान कही जानेवाली उर्दू की सब से बड़ी खुसूसियत इसका एक अवामी ज़ुबान होना है, जो जात, नस्ल और मजहब से परे दिलों की जुबान है.ये उर्दू है जिसे वली दक्कनी, मीर तकी मीर, सुमिर्जा गालिब, रघुपति सहाय फिराक से लेकर बशीर बद्र, परवीन शाकिर और राहत इंदौरी तक, मंटो से लेकर इब्ने शफी तक और बादशाहों से लेकर फकीरों तक, सबने सींचा और जेहनों से लेकर दिलों तक उर्दू की खुशबू को बिखेर कर रख दिया।
उर्दू की मिठास और खूबसूरती ने इसे तहजीब के पैमाने में बदल दिया.उर्दू हमें जिंदगी के तौर तरीके, तहजीब और सलीका तो सिखाती ही है, इसकी मिठास और इसके हुस्न ने न सिर्फ इसे शायरों की जुबान बनाया, बल्कि हकीकत में इसे मोहब्बतों की, आशिकों की जुबान बना दिया. चाहे इश्क का इजहार हो, या माशूक की बेवफाई हो, उर्दू हर जज्बे को ज़ुबान देती है.
अहमद वसी के लफ्जों में:
वो करे बात तो हर लफ्ज से खुशबू आये!
ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आये!
भूगोल विभाग से आये हुए सूरज इंदौरा न कहा कि इसी बहाने उर्दू जुबान बोलें यानी मोहब्बतों का इजहार करें. इंसानियत से प्यार करें.उर्दू एक मिठास भरी जुबान है। उर्दू किसी एक धर्म की भाषा नहीं है।
उर्दू भाषा का स्वतंत्रता संग्राम में काफी अहम भूमिका रही है.स हजारों उर्दू वालों ने जंग-ए-आजादी में अपनी कुर्बानियां दी. उर्दू एक तहजीब है। एक सलीका है. यह व्यवहार में विनम्रता लाता है।
यह कहना उचित होगा कि-उर्दू बोलोगे, तो जबां शीरीं हो जायेगी, तहजीब भी सीखोगे, सलीका भी आयेगा.अल्लामा इकबाल एक महान उर्दू कवि और विचारक रहे हैं. उन्होंने उर्दू में शायरी कर उर्दू को एक नयी जिंदगी दी।
बच्चों के गीत हो या दर्शनशास्त्र की. हर फन में इकबाल लाजवाब हैं. इकबाल की शायरी की चर्चा के बिना उर्दू की हर महफिल अधूरी है. उर्दू भारत की जुबान है. बकौल शायर : मादर-ए-हिन्द की बेटी है जबान-ए-उर्दू, किसी की क्या ताकत की मिटा दे उर्दू, मगर ऐ शहर-ए-वतन कुछ तुझे मालूम भी है, तेरे ही इस शहर में उर्दू बेनाम भी है.भारतीय उपमहाद्वीप में एक बड़ी आबादी उर्दू से जुड़ी है. हाल के एक सर्वे के अनुसार वैश्विक स्तर पर उर्दू बोलनेवाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. यह उर्दू के लिए अच्छा संकेत है
इस मौके पर हिंदी विभाग से डा जसबीर सिंह, पंजाबी विभाग से डा गुरप्रीत सिंह, अनुवाद विभाग से डा रश्मि प्रभा, डा वन्दना कौल,डा आर के सूदन, संगीत विभाग से डा पुरषोत्तम व उर्दू विभाग से सतबीर, आरज़ू, कृष्णा,शीतल,भारती, गुरबचन, महेंद्रपाल,रवि, मनदीप आदि छात्र छात्राएं शामिल रहे।