आनंद त्रिपाठी की रचनाएँ
लिखो नवल श्रृंगार
फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपार
उठो कवि इस भोर में लिखो नवल श्रृंगार
लिखो नवल श्रृंगार प्रेम की अनुपम धुन में
हो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन में
अरुणोदय की झलक तुषार की कैसी माला
भ्रमर गीत यह मधुर गान है रस वाला
यही अवधि है बजें दिलों के तार
उठो कवि अब लिख दो नया श्रृंगार||
मुक्तक
( 1 )
होंठ गुलाबी नयन कटीले फूलों से तेरे गाल प्रिये
चंचल मन पर दखल दे रहे ये घुघराले बाल तेरे
प्रेम पथिक में लुटे हुए हम आशिक पागल मान प्रिये
मुझको भी अब अपना लो न सच कहता हूँ बात प्रिये||
( 2 )
इस ठहरे हुए पानी को आब-ए-ज़मज़म करदे
नेक बंदो को इबादत सिखा दे इतना तो करम कर दे
भूखे बच्चे जो लिए हैं अपने हाँथो में कांसा
या खुदा भर दे झोली इन बच्चों पर तो रहम कर दे||
आनंद त्रिपाठी “आतुर “
(मऊगंज म. प्र.)