नाम लेकर मुझे तुम बुलाया करो
नाम लेकर मुझे तुम बुलाया करो
नाम लेकर मुझे तुम बुलाया करो
जब भी जी चाहे तुम आज़माया करो
बेगुनाहों की फ़रियाद सुनता है रब
झूठी तुहमत न ऐसे लगाया करो
इश्क़ का तुहफा भी नज़्र करती तुम्हें
मेरी ग़ज़लों में आकर समाया करो
बात माना करो दूसरों की भी तुम
हर समय अपनी ही मत चलाया करो
ये झिझक कैसी जब इश्क़ तुमको हुआ
बेधड़क मुझसे मिलने तुम आया करो
दर्दे-दिल की दवा है मेरे पास भी
हाले-दिल तुम न मुझसे छुपाया करो
जीस्त मीना ख़ुदा की अमानत है ये
मुफ़्त में इसको तुम मत लुटाया करो
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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