कागा के खट्टे मीठे अनुभव
अजीबो ग़रीब
दुनिया में बंदा नहीं कोई दूध का धुला ,
पीर फ़क़ीर पंडित नहींं कोई दूध का धुला!
नो माह तक मां के गर्भ में गुज़रे ,
मल मूत्र रक्त लिप्टा नाल से बंधा मिला !
भूख प्यास से बिलबिला रोते हुए जन्म लिया ,
गटक गया दूध मां का चुप चाप चुलबुला !
नहाया नीर से दूध से नहीं नंगा बदन,
बिना सिला पहन लंगोट जो जेसा मिला !
दांत नहीं तब तक पिया दूध चाव से ,
दांत आये खाया पतला दलिया सुगम सुलभ सिलसला !
छट्टी के पोतड़े सूखे नहींं रेंगना शुरू ‘कागा’
बंदा महा पापी नहीं कोई दूध का धुला!
क़िस्स़ा कुरसी का
किस़्स़ा कुरसी का करता मन मुटाव,
ह़िस़्स़ा कुरसी का करता मन मुटाव!
लोक तंत्र की प्रणाली बड़ी लचीली ,
पांच साल बाद होते चालू चुनाव !
नया राजा चुनती प्रजा कर विचार ,
धन बल लालच होता भारी दबाव!
वार्ड पंच सरपंच सदस्य पंचायत समिति ,
ज़िला परिषद विधायक सांसद होता तनाव !
होती बंदर बांट कांट छांट डांट ,
ज़ख़्म बड़े गहरे भरते नहीं घाव !
विकास की गंगा बहती उल्टी धारा,
नाबीन बांटे रेवड़ियां देता अपने स्वभाव !
सत्ता की घोड़ी चढ़ते चाल बाज़,
योग्य से होता हमेशा भेद भाव!
नाथी का बाड़ा बन गई राजनीति,
‘कागा’ क़िस़्स़ा कुरसी का उतार चढ़ाव!
तफ़ावत
अमीर ग़रीब की खाई चौड़ी होती जा रही है ,
दूर क़रीब की खाई चौड़ी होती जा रही है !
समानता का अधिकार दिया संविधान ने जनता को ,
अमल नहीं रत्ती भर मानवता खोती जा रही हैं !
जाति धर्म भेद भाव छूआ -छूत का बोल बाला,
ऊंच नीच से दुखी आत्मा रोती जा रही हैं !
शिक्षा का स्तर गिर रहा पढ़ते सरकारी स्कूलों में,
धनाढ्य बच्चे अंग्रेजी माध्यम व्यवस्था चरमराती जा रही है!
ग़रीब की आवाज़ फ़रियाद सुनता नहीं कोई क़ाज़ी ह़ाकम,
घुट कर मर रही ग़रीबी कराहती जा रही है !
ग़रीब अमीर को एक तराज़ू में तोलना चाहिये ‘कागा’
लोक तंत्र की लच्चर प्रणाली घबराती जा रही है !
मेरा भारत
मेरा भारत महान सब सुखी रहें इंसान,
मेरा भारत महान सब सुखी रहें किसान!
सत्यम शिवम सुंदरम सत्य मेव जयते अटल,
महंगाई का मुंह काला जय हो संविधान!
संविधान की प्रस्तावना में निहित सम्पूर्ण निचोड़,
धर्म निरपेक्ष है मुल्क हमारा जय जवान!
पड़ोसी मुल्कों से सटी सीमायें बेह़द सुरक्षित ,
घाक चोबंद चोकसी सीमा प्रहरी रहते सावधान !
कर नशा भय मुक्त रहे भारत हमारा ,
क़र्ज़ नही रहे एक कोड़ी जय विज्ञान !
जाति धर्म मज़हब की दीवार टूटे ‘कागा’
ख़ुशहाली रहे ग़रीबी का नहीं नामो-निशान !
इश्क़
लगता है मुझे भी इश्क़ हो गया,
लगता नहीं दिल मेरा इश्क हो गया!
जवानी का जोश जुनून जज़्बात नहीं ज़रा,
दिल बड़ा दीवाना मस्ताना कहां खो गया !
मेरा माशूक़ रुह़ बन रहता मेरे अंदर ,
आशिक़ बन खोज रहा बाहर खो गया!
अश्क बहते नैनों से मन बड़ा बेचैन,
सांसों में समाया गहरी नींद सो गया !
बाहरी बुत्त रंगीन हसीन मेरा मस्त मोला ,
जब हुआ दीदार मैं ग़नी हो गया!
इश्क़ मुझे ह़क़ीक़ी मिजाजी मजाज़ी नहीं ‘कागा’
उमर गुज़री जुदाई में इश्क़ हो गया!
आदम ज़ात
कुत्ते तो कुत्ते होते है भौंकना आ़दत उनकी ,
पालतू हो चाहे फ़ालतू हो भौंकना आ़दत उनकी !
ख़ुश होनै पर मुंह घाटते नाराज़गी पर काटते,
पूंछ टेढ़ी सीधी नहीं हो सकती आ़दत उनकी !
पिल्लों का झुंड हो चाहे टामी अकेला अलबेला ,
गुर्राते टूट पड़ते कर सीधा ह़मला आ़दत उनकी !
चंद आदम भी कुत्तों की फ़ित़रत हुब्हू होती,
कम्मियां खोजते रहते करते बदनाम अजब आदत उनकी!
तिल का ताड़ राई का पहाड़ बनाते रहते,
फंसाने का गूंथ देते जाल चाल आ़दत उनकी!
कुत्ता बन गये मगर बावफ़ा नही बने ‘कागा’
इंसान के साथ इंसान नहीं बनें आदत उनकी!
दर्द ए दिल
दर्दे दिल झलक जाता अश्क बन कर,
दर्दे दिल छलक जाता अश्क बन कर !
फ़िराक़ में फ़ना होता वजूद बर्बाद बेचारा ,
दर्दे दिल दुबक जाता अश्क बन कर !
जले दिल के फफोले किस को दिखायें ,
दर्दे दिल सुबक जाता अश्क बन कर !
सीने में सुलग रही आग बुझती नहीं,
दर्दे दिल भभक जाता अश्क बन कर !
स़दियों पुराना जाना पहचाना हमारा रिश्ता नाता ,
दर्दे दिल खटक जाता अश्क बन कर !
माना ज़ालिम है ज़माना कोई सगा नहीं ,
दर्दे दिल भटक जाता अश्क़ बन कर !
दर्द होता है बेदर्द होते हमदर्द बेगाने ,
दर्दे दिल लटक जाता अश्क़ बन कर !
दिल तोड़ने के करते बहाने बेशुमार बेवफ़ा ,
दर्दे दिल अटक जाता अश्क बन कर !
दो फूल चढ़ा देना क़बर पर ‘कागा’
दर्दे दिल महक जाता अश्क बन कर !
जीना मरना
जीना हुआ जंजाल नफ़रत के माह़ोल में ,
मरना हुआ मुह़ाल नफ़रत के माहोल में !
नफ़रत के नाग रेंगते रहते फन फेलाये ,
टेढ़ी मेढ़ी चाल नफ़रत के माह़ोल में !
चिंगारी सुलगाई चाटुकारों ने आग भभक रही ,
ज्वाला बनी मशाल नफ़रत के माह़ोल में !
फ़िरक़ा-परस्ती का बिग़ुल बजा ज़हर घोला ,
मचा बड़ा बवाल नफ़रत के माह़ोल में !
नाम निहाद अनास़र अमनो अमान नही चाहते ,
दंगा कराते दलाल नफ़रत के माह़ोल में ?
ज़ात मज़हब जाल में जकड़ गये ‘कागा’
इंसानियत पर सवाल नफ़रत के माह़ोल में !
मेरी याद
अगर आये मेरी याद ज़रूर याद करना ,
अगर सताये मेरी याद ज़रुर याद करना !
दिल की धड़कने सुन लेना ग़ौर से,
अगर बताये ख़ास़ बात ज़रूर याद करना !
दिल देकर दिल दिया दग़ा नहीं किया ,
अगर गाये नग़मा प्यारा ज़रूर याद करना!
स़िदक़ है मिलने की दिल दूर नज्ञी ,
अगर चाहे दिल मिलना ज़रूर याद करना !
दिल बड़ा बेताब रहता मिलना आसान नहीं
अगर दबाये दर्द बेदर्द ज़रूर याद करना!
बेचैन बद ह़वास इधर उधर डोलता ‘कागा’
अगर आज़माये दिल प्यारा ज़रूर याद करना !
मुतालबा
मुझे मंज़ूर है हर त़रह़ का मुत़लबा तेरा,
मुझे क़बूल है हर त़रह़ का मुत़लबा तेरा !
बिना मांगे दिल सुपुर्द कर दिया दिलरुबा तुमको,
जान मांगो ह़ाज़िर कर देंगे मुकमल मुत़ालबा तेरा !
तेरा मेरा रिश्ता स़दियों पुराना जिस्म में रूह़,
तेरे बिना बेजान बेगाना बंदा नाक़ाम मुत़ालबा तेरा!
तेरे ह़ुस्न का दीवाना दिल तड़प रहा हरदम,
अश्क उमड़ रहे आंखों से होकर मुत़ालबा तेरा !
दिल बड़ा पागल मचल उछल रहा सीने में,
मलाल मिलने का बेचैन बड़ा बेक़रार मुत़लबा तेरा!
आंखों ने ईक़रार किया इंतज़ार कब तक ‘कागा’
दिल तेज़ तर्रार करता तकरार मुत़ालबा तेरा
मुसाफ़र
नहीं तुम रहोगे नहीं हम रहेंगे चले जायेंगे,
नहीं दोस्त रहेंगे नहीं दुश्मन रहेंगे चले जायेंगे !
दुनिया दो दिन का मेला आना ओर जाना,
नहीं यह रहेंगे नहीं वो रहेंगे चले जायेंगे!
सूरज चांद सितारे चलते रहते सब है मुसाफ़र,
नहीं अमीर रहेंगे नहीं ग़रीब रहेंगे चले जायेंगे!
दुनिया फ़ानी ग़ुरूर नहीं कर गाफ़ल बंदा ,
नहीं सिकंदर रहेंगे नहीं क़लंदर रहेंगे चले जायेंगे!
आंखों की चमक बता देती ख़ुशी की रंगत ,
नहीं वज़ीर रहेंगे नहीं फ़क़ीर रहेंगे चले जायेंगे !
चार दिनों की चांदनी फिर रात होती अंधेरी,
नहीं अपने रहेंगे नहीं पराये रहेंगे चले जायेंगे !
यह दुनिया मुसाफ़र खा़ना चंद रोज़ का बसेरा,
नहीं महमान रहेंगे नहीं मेज़बान रहेंगे चले जायेंगे !
नेकी कर जहान में संग चलेगी ज़रूर ‘कागा’
नहीं स़ूरत रहेगी नहीं मूर्त रहेगी चले जायेंगे!
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
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