आधुनिक द्वंद्व
आधुनिक द्वंद्व
प्रभु सुमिरन के पथ पर, पाओ सच्ची राह,
सत्य, करुणा, प्रेम ही, जीवन का उन्नाह।
फूलों की महक में छुपा, है प्रभु का आभास,
जीवन की हर साँस में, बसा प्रेम-विलास।
नदी बहती निर्बाध सी, सिखलाए ये बात,
कठिनाई चाहे जितनी, रखना सहज प्रवाह।
भारतीय संस्कृति में, गूँज रहा संसार,
रीति-रिवाज और कला, अनमोल उपहार।
नृत्य में वह लय बसी, रंगों में अभिराम,
कला से उन्नति करे, भारत का हर धाम।
सोचों की गहराई में, मिलता ज्ञान अपार,
खोजें जो अंतर्मन को, पायें प्रेम-संसार।
अहंकार के मोह में, खोई मानव जात,
भौतिकता के पीछे दौड़े, भूले प्रभु-प्रभात।
आधुनिकता के ताने में, बुन रहा जो स्वप्न,
भटका उस पथ पर, छूट गया जो अपना अपन।
पर्वतों की ऊँचाई, सिखलाए हर हाल,
कठिनाइयों को जीतकर, पाओ ऊँचा बाल।
प्रकृति से सीखा मन ने, सुख-दुःख का संवाद,
संतोष में बसा यहाँ, जीवन का आधार।
भारतीय संस्कृति सदा, रही सत्य का सार,
पूजा में है प्रेम का, वह अक्षुण्ण विचार।
मन पागल हो दौड़ता, हर क्षण की तलाश,
मोह माया की रेत में, खो देता विश्वास।
गुरु-ज्ञान की संगत में, मिलती है नव राह,
आत्मा का उजला सच, लेता जीवन चाह।
रंगों से सजी कला, बनती जीवन मीत,
शब्दों में रस घोलकर, कविता बाँधें गीत।
आधुनिकता की होड़ में, छूटा मानवधर्म,
प्रेम, अहिंसा खो गए, रह गई सिर्फ कर्म।
प्रकृति के हर रंग में, छिपी सजीवता,
सच्चे प्रेम के सूत्र से, हो जीवन सघनता।

अवनीश कुमार गुप्ता ‘निर्द्वंद’
प्रयागराज
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