मैं कान हूं
( Main kaan hoon )
मैं कान हूं
अपने जिम्मेदारियों से
परेशान हूं।
गालियां हों
या तालियां
अच्छा हो
या बुरा
सबको
सुनकर,सहकर
हैरान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
चश्में का बोझ
ढोकर
डंडियों से जकड़ा
हुआ
आंखों के मामलों
में, मैं
बना
पहलवान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
गलतियां
हाथ की हो
या मुंह आंख की
मरोड़ा मैं जाता हूं
इसलिए कि
मैं बेजुबान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
फैशन के झाला बाला
के भरमार
सिगरेट बीड़ी दर्जी के कलम
का भार
ढोकर भी
बना अंजान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
दुर्भाग्य देखिए
छेदन मेरा हो
दर्द मैं सहूं
बखान चेहरे का हो
मैं देखता रहूं
जैसे कि
अंजान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
आंखों में
काजल
होंठों पर
लिपस्टिक
का अपना श्रृंगार है
मेरा अपना क्या है?
न शौक
न श्रृंगार
बस दुःखों का
भरमार है
सबों में पिसता
जैसे
पिसान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
न कवि के कविता में
न शायरी न किस्सा में
मुझे कौन याद करता है?
ना कोई तारीफ करता है
कभी भी कहीं भी
लगता है मैं कान नहीं
कूड़ादान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
ये दुःख
अपने मुख
किससे कहूं?
किसे सुनाऊं?
क्या करूं?
कैसे सहूं?
सब सह कर
भी लगता है
बेईमान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।
आंसू गिराती
है बिलखती
दुःख कहूं गर आंख से,
बहते न थकता
है कभी,
कहता कभी गर नाक से
चिपका पड़ा
दोनों तरफ
जैसे
बेफजूल
सामान हूं।
खैर छोड़िए
मैं कान हूं।