hindi kavita -फिर वही बात!
फिर वही बात!
( Phir Wahi Baat )
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प्रियतम! तुमको प्राण पुकारें ( Priyatam tumko pran pukare ) अंतस्तल की आकुलता को देख रहे हैं नभ के तारे। निविड़ निशा की नीरवता में, प्रियतम तुमको प्राण पुकारे। सब कुछ सूना सा लगता है। प्रतिपल व्यथा भाव जगता है। कोई दस्यु सदृश ठगता है। रोम रोम कंपित हो जाता, किसी अनागत भय के…
धरती की पुकार ( Dharti ki pukar ) जब धरती पे काल पड़ जाए हिमपात भूकंप आए वृक्ष विहीन धरा पे बारिश कहीं नजर ना आए ज़र्रा ज़र्रा करें चित्कार सुनो सुनो धरती की पुकार सागर व्योम तारे सुन लो सारे जग के सुनो करतार अनाचार अत्याचार पापाचार का बढ़े पारावार संस्कार…
किताबें खुशबू देती हैं ( Kitaben Khushboo Deti Hai ) किताबें खुशबू देती हैं जीवन महका देती हैं l किताबों में समाया ज्ञान विज्ञान l किताबों का जग करे गुण~गान l किताबों ने निर्मित की है जग में विभूति महान l अकिंचन कालिदास, सूर, तुलसीदास नभ में चमके भानु समान l किताबें गुणों भरी है…
मतदान करना ( Matdan karna ) बात मानो हमारी सारी जनता । वोट डालने तो जाना पड़ेगा।। लोकतंत्र की यही है जरूरत। इसे मजबूत करना पड़ेगा।। यह जो अधिकार सबको मिला है। यही कर्तव्य करना पड़ेगा ।। चाहे लाखों हों काम वोट के दिन। पर समय तो निकालना पड़ेगा।। एक-एक वोट रहता जरूरी ।…
बिटिया, खुश रहना ससुराल ( Bitiya, khush rahna sasural ) बिटिया खुश रहना ससुराल रहना सदा सुखी खुशहाल खुशियों से झोली भर जाए सुख आनंद सदा तू पाये महके जीवन दमके भाल बिटिया खुश रहना ससुराल प्रेम की जोत जलाते रहना भाव मधुर फैलाते रहना नेह की खुशबू महक उठेगी सपने नये सजाते…
संम्भाल अपने होश को ( Sambhal apne hosh ko ) उत्साह भर कर्मों में अपने जीवन जीना सीख ले, छोड़ अपनों का सहारा खुद भाग्य रेखा खींच ले। भीड़ में है कौन सीखा जिंदगी के सीख को, हाथ बांधे ना मिला है मांगने से भीख को। ढाल ले खुद को ही…