कुछ कर गुजरने की तमन्ना
जो तेरे दिल में नहीं,
जो जल रही थी आग उर में
बुझ तो नहीं गई कहीं?
देखूं जरा,
समझूं जरा;
कुछ तो हुआ है ऐसा बड़ा?
जब जोर तू लगाओगे नहीं,
पिछड़कर, बिखरकर , बेनूर हो-
बेरंग बेगैरत फिरोगे ,
बोलो खुद ही,क्या यह सही नहीं?
कैसे नजरें मिलाओगे?
क्या मुंह दिखाओगे?
कैसे करोगे सामना ? भविष्य से!
क्या नई पीढ़ी को दे जाओगे?
नाकामी,नकारापन !
या आसमां छूने की ललक,
जिसे देख सीखें सब सबक;
देख ऐसे तू न बहक!
संभाल खुद को,
हताशा से निकाल खुद को।
खुदा साथ देगा…
वरना स्वयं मरोगे,
सबको मारोगे।
देश को भी होगी मुश्किल,
छवि धरा पर होगी धूमिल;
मेरी बात सुन-
पुनः पुष्प सा तू खिल।
बोल क्या करूं तेरे लिए?
संभालूं कैसे तुझे?
जो आग थी उर में तेरे, जलाऊं कैसे?
टिमटिमाते दीए को भभकाऊं कैसै?
बोल सखी सन्मार्ग पर तुझे ले आऊं कैसे?