उलझन

Ghazal | उलझन

उलझन

( Uljhan )

क्यों  उलझा  है  शेर हृदय तू, बेमतल की बातों में।
जिस संग मन उलझा है तेरा, तू ना उसके सासों में।
मना  ले  अपने चंचल मन को, वर्ना तू पछताएगा,
प्रेम पतित हो जाएगा फिर,रूक ना सकेगा आँखो में।
इतना ज्ञान भरा है तुझमें, फिर.भी क्यो अंजान रहे।
इकतरफा है प्यार तेरा यह,जान के भी अन्जान बने।
जितना  उलझेगा  तू  उसमें, वह तुझको उलझाएगा,
अभी समझ.ना पाएगा तो, वक्त निकल यह जाएगा।
मन का रिद्धम सुनो बटोही,मन जलता क्यो अग्नि सा।
शेर निकल जा इन लपटों से, बनेगा ना फिर जग्नि सा।
उसका  क्या  है  वो  माया  है,  साथ  नही देगा हरपल,
वक्त के साथ बदल जाएगा, जलेगा फिर तू अग्नि सा।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें : –

Kavita | गजगामिनी

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *