मृत्युबोध
मृत्युबोध

मृत्युबोध

( Mrityu Bodh )

 

कुछ धुंवा से द्वंद मंडराने लगे हैं।
मृत्यु तत्व महत्व समझाने लगे हैं।।
ऐषणाओं से सने, जीवन से मुक्ति,
बन मुमुक्षु अन्यथा, है मृत्यु युक्ति,।

अनसुनी सी बात बतलाने लगे हैं।। मृत्यु तत्व०

जीवन है आशा, निराशा मृत्यु ही है,
सिंधु में रहता है प्यासा, मृत्यु ही है।
युद्ध में हारे हुये रणपुष्प मुरझाने लगे हैं।। मृत्यु तत्व०

हृदय की प्रियवस्तु बिछुड़ी न मिली,
कली तो खिलने को थी पर न खिली,
तो समझना दिन गिने जाने लगे हैं।। मृत्यु तत्व०

मृत्यु पुनरावृत्ति है अवशेष का,
आत्मदर्शी काट बंध क्लेश का
मृत्यु चक्र मे लक्ष चौरासी खाने लगे है।। मृत्यु तत्व

जन्म न होता तो मृत्यु हार जाती,
निर्विकारी आत्मा उस पार जाती,
शेष तेरे मृतवसन में मोक्ष के ताने लगे हैं।। मृत्यु तत्व०

 

लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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