
गजगामिनी
( Gajagamini )
मन पर मेरे मन रख दो तो,मन की बात बताऊं।
बिना तेरा मै नाम लिए ही, सारी बात बताऊं।
महफिल में कुछ मेरे तो कुछ,तेरे चाहने वाले है,
तेरे बिन ना कटते दिन, हर रात की बात बताऊं।
संगेमरमर पर छेनी की, ऐसी धार ना देखी।
मूरत जैसे सुन्दर रूप को, पहले कभी ना देखी।
कटि धनुष सी नैन कटारी,पल पल झपक रहे है,
थम थम चाल चले गजगामिनी,ऐसी नार ना देखी।
लट घुघरालें केशु है काले, मन.गजरा पे मोहत।
एक कोर से दूजे कोर तक, काजल नैनन सोहत।
काम कमान सी दौंव भौंहे के मध्य में बिदिंया चंदा,
ऐसे जैसे रति यौवन में, कामदेव को खोजत।
आचंल सिर से सरकर मानों, उन्नत अंग दिखाए।
सांसों की गति घटती बढती, शेर हृदय बंध जाए।
हे मृगनयनी सुनों चंचला, तुम षोड़सी सुकुमारी,
उसपर अधरों के कंम्पन से, मेघ मचल कर आए।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )