समय का कालखंड | Kavita Samay ka Kalkhand
समय का कालखंड
( Samay ka kalkhand )
समय की महत्ता जो समझे
वही है बलवान,
समय के संग चलनेवाला
होता है धनवान।
सु अवसर पाकर
जो कर्म से मुकर जाता है,
वह अभागा है धरती पर
जीवन भर पछताता है।
समय ही करावत लड़ाई-झगड़ा
बनावत राजा रंक फकीर,
समय ही बनाता-बिगाड़ता
रिश्ता और तकदीर।
समय जब विपरीत हो
सबकी मति मारी जाती है,
अपनो परायों का बोध न होता
सर्वस्व नाश हो जाती है।
समय का कालखंड
सब जन पर पड़ता भारी,
सुर असुर नर नारायण
सबकी होती है लाचारी।
लेखक: त्रिवेणी कुशवाहा “त्रिवेणी”
खड्डा – कुशीनगर
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