चले नेताजी
चले नेताजी

व्यंग्य – चले नेताजी

( Vyang – Chale Netaji )

 

चले  हैं नेताजी समाज सेवा करने
हरने  जनता–जनार्दन  की  पीड़ा,
पाँव  उखड़  उस  गरीब का जाये
जहाँ खड़ा हो जाए इनका जखीड़ा।

 

रखवारों की कुछ टोली है संग में
कुछ  चाटुकारों   की   है  फौज,
सेवा के नाम पर फोटो खिंचवावत
मनावत हर जगह मौज ही मौज।

 

ले-देकर राजनीतिक धन्धा चलावत
देखावत जन-जन को बड़का सपना,
केवल   एकबार   कुर्सी   मिल  जाये
फिर कौन तुम किसका कौन अपना।

 

लेखक: त्रिवेणी कुशवाहा “त्रिवेणी”
खड्डा – कुशीनगर

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