जामुन
जामुन ( Jaamun )
देखो काली-काली जामुन भाए डाली डाली जामुन l कुछ पक्की कुछ कच्ची जामुन कुछ मीठी कुछ खट्टी जामुन l गुच्छे में खूब लटक रही है बच्चों को खूब खटक रही है l कुछ काली कुछ लाल हरी लेकिन जामुन खूब फरी l बच्चे चढ़कर तोड़ रहे हैं कुछ बीन रहे कुछ छोड़ रहे हैं l कोई ऊपर से फेंक रहा है कोई नीचे से लोक रहा है l बीन -बीन कर जेब के अंदर लपक रहे हैं जैसे बंदर l उतनी मीठी जितनी काली खाकर मुंह में आए लाली l काटो तो रस निकले लाल बच्चे खाकर हुए निहाल l पानी पाकर झट से पकती हवा चले तो खूब टपकती l बच्चों को अति भावे जामुन बड़े प्रेम से खाए जामुन l बूढ़ो को ललचाए जामुन पेट को साफ बनाए जामुन l कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ” औराई, भदोही ( उत्तर प्रदेश।) पर्यावरण | Paryaavaran par kavita