आखिर क्यों

( Aakhir Kyon ) 

 

युगों से उठ रही थी आँधियाँ
न जाने क्यूं ओले बरसै
क्यूं तूफानों ने किया रुख मुझ पर,
क्यूं, आखिर क्यों ?
क्या ईश्वर को था मंजूर
जो ले बैठा परीक्षा मेरी
मैंने तो अपने मन-वचन से
किया था सब वरण
फिर मेरी साधना पर,
प्रश्न चिन्ह आखिर क्यों ?
न जाने क्या लगा गलत
जबकि मैंने सतकर किया था पुण्य
न रखा कोई भाव भेद का
माने सारे सब एक रूप
फिर मेरी पूजा पर
उठाई गई उंगलियाँ,
क्यूं ,आखिर क्यों ?
मैंने मौन का लिया था सहारा
न कहा किसी से कुछ
सोचा था शांत मन से
किस बात की अपराधी मैं
आखिर क्यों नही रखा अपना प्रतिपक्ष,
क्यूं, आखिर क्यों ?

 

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’

लेखिका एवं कवयित्री

बैतूल ( मप्र )

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