पहचान

( Pehchan ) 

भीड़ मे शामिल जरूर हों
वह कार्य विशेष की एकता का प्रतीक है
किंतु ,आप भीड़ का नही
अपने उद्देश्य का हिस्सा बनें…

ऊंचाई
पताका उठाने से नही मिलती
पताका योग्य होना ही
आपको आत्मविश्वासी बनाता है
और ,आज नही तो कल
यही आज की भीड़
कल आपके हिस्से की भीड़ बनने को उतावली रहेगी…

चलना और चलाना
यही तो आपके विवेक को दर्शाता है
मंजिल कभी भी
दौड़कर नही चलकर ही मिलती है….

नकल से नकलची नही
स्वयं सृजनकर्ता बनें
कीमत आपके मुहर की होनी चाहिए
और की पहचान मे
कहीं आपकी पहचान लुप्त न हो जाए…

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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