आखिर तुम हो मेरे कौन?
आखिर तुम हो मेरे कौन?
खिलते हो मुरझाते हो,
आकर रोज सताते हो।
सुन्दर गीत एक सुनाकर,
मन बेचैन दर्पण बनाकर ।
सुधि आते हो बारम्बार,
करते हो मुझपर ऐतबार।
बात नहीं कर पाती तेरी,
रोकूँ याद न रूकती तेरी।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
प्रति रोम-रोम स्पन्दित होती,
सुधियों में आनन्दित होती।
आच्छादित प्रियवर बन कर,
आह्लादित उर करते मन भर।
अनमोल भाव तेरा ठाकुर,
तुमसे मिलन को हूँ आतुर।
नेह नयन भर तुम जब आते ,
एक तुम्हीं हो मन को भाते।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
भूलूँ तुमको,जिद करती हूँ,
गम दूर बहुत हद करती हूँ।
रोती आहत नशीली आँखें,
करवट बदलती सोती रातें।
तन्हाई प्रेम को तंग करती,
एकाग्रता को है भंग करती।
मैं कितनी तुझमें पता नहीं,
मैं हूँ भी या नहीं? बता सही,
आखिर तुम हो मेरे कौन??
सपनों में चुम्बन ले भगते,
रिमझिम सावन से तुम लगते।
मृदुल हृदय को तुम हो जंचते,
पीर विरह की हम न कहते।
तुम नहीं जानते हो मुझको,
ये नयन खोजते हैं तुझको।
यदि मेरी बात पहुँच जाए ,
प्रेम प्रीति मन रूचिकर भाए।
फिर प्रेम भाव पाएंगे तुमसे,
उस दिन फिर पूछेंगे तुमसे ।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
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