आओ रुक जायें यहीं

आओ रुक जायें यहीं

आओ रुक जायें यहीं

 

आओ रुक जाए यही

कुछ सुकून तो मिले

रफ्ता रफ्ता जिंदगी से

कुछ निजात मिले

 

हम भी बहके से चले

राहे उल्फत में कभी

याद करते हैं तुम्हें

कहाँ भूले हैं अभी

 

बात वो रुक सी गई

बात जो कह ना सकी

दिल ऐ आइने में अभी

एक तस्वीर है रुकी

 

चाँद जब छुपने चला

साँस तब थम सी गयी

रात भर आँखे मेरी

बेवजह बहती रही

 

तुम कभी मुड के मिलो

दर बदर करके रहम

फासले करके निहाँ

कारवाँ तो बुनो

 

हम भी हँसँके तुम्हें

दामन में समेटेगें

तुम भी कुछ एसे ही

सवालात चुनो

 

तेरे वादो की कसम

अब हमे याद नहीं

तुझको आबाद किए

होके बरबाद सुनो

 

आओ रुक जायें यहीं

कुछ सुकूँ तो मिले

रफ्ता रफ्ता जिंदगी से

कुछ निजात मिले

 

 

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लेखिका : डॉ अलका अरोडा

प्रोफेसर – देहरादून

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