एक कप चाय गरम

( Ek Cup Chai Garam )

 

जब भी मिलती हमें चाय-गरम,
खुल जाता है यह हमारा करम।
निकल जाते अंदरुनी पूरे भरम,
हम हो जाते है भीतर से नरम।।

मैं न करता चाय काफ़ी में शरम,
परिवार रिश्तेदार या मित्र परम।
ठण्डी हो चाहे फिर वह हो गरम,
जहाँ पर पी है भूलते नही जन्म।।

हम रहेंगे सदैव तुम्हारे ही सनम,
है आज हमारी तुमको ये कसम।
कड़क चाय है दवा जैसी मरहम,
रखना सदैव हम सभी पर रहम।।

चाय, काफ़ी का दूर तक परचम,
अदरक दूध से यह बने अनुपम।
मिलकर रहो और रखो ये संयम,
लेकिन चाय कब मिलेगी सनम।।

करते है नारी शक्तियों हम नमन,
चलो हमारे संग मिलाकर क़दम।
आज खेल करो नही कोई खत्म,
एक कप चाय हो जाऍं गर्म गर्म।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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