अस्तीन के सांप

अस्तीन के सांप | Poem aasteen ke saanp

 अस्तीन के सांप 

( Aasteen ka saanp ) 

 

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

1.कुछ अपने जो पराये हो गए,पराये मेरे अपने हो गए |
अपनों को खो दिया पराया मान,वो अब सपने रह गए |
कुछ खास अपनों को जी-जान से,अपना बनाना चाहा |
सरेआम दगा दे गए दिखाबा किया,बस अपने-पन का |

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

2.जो पारस था मेरे पास,उसे पत्थर समझ कर फेंक दिया |
बाहरी चमक देख पत्थरों की,अपने दिल में सेंथ रख लिया |
जब सचेते वही पत्थर बना,बजह मेरे अपनों को खोने की |
बडी देर हो चुकी सरेआम मुझे भी,घायल कर छोड़ दिया |

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

3.बडा पश्चाताप हुआ पर अब क्या,बहुत देर हो गई |
मेरी हँसती-खेलती छोटी सी दुनियां,टूट के ढेर हो गई |
मैं तब भी चुप था अब भी चुप हुँ,सब ईश्वर पर छोड दिया |
वही इंसाफ कर देगा जबाब उन्हें,यकीन है मुझे मेरे रब पर |

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

4 जिन्हे हम समझें वो हमें न समझे,यही दस्तूर दुनियां का |
जिसे दुत्कारो वही समझे अपना,है यही फितूर दुनियां का |
देना चाहो सारी खुशियाँ जिसको,वही लोग तकलीफें देते हैं |
जाने कब वो डस जाएं,कुछ आस्तीन के सांप हुआ करते हैं |

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

5.आस्तीनी सांपों का नहीं ठिकाना,कहीं पे भी छिप जाते हैं |
ढ़ोंग करते अपने-पन का,दिलो-दिमाक मे जगह बना जाते हैं |
खोखला करते अन्दर से,फिर सांप बन कर डस लेते हैं |
बचने का रास्ता नहीं छोडते,बचना आस्तीन के सांपों से |

मेरे अपनों ने मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

6.मेरे सपनों को मुझसे ही,कोषों दूर कर दिया ||
किसका क्या बिगाडा,जो मुझे चूर कर दिया ||
पीछे खंजर घोंपा,जीने को मजबूर कर दिया ||
मेरे अपनों ने ही मुझे,अपनों से दूर कर दिया ||

 

लेखक:  सुदीश भारतवासी

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