Poem apna dharm batana hai
Poem apna dharm batana hai

अपना धर्म बताना है

( Apna dharm batana hai )

 

बुझी हुई चिंगारी है ये, फिर से इसमे आग भरो।
याद करो इतिहास पुराना, और फिर से हुंकार भरो।

 

कोटि कोटि हिन्दू के मन में, धर्म के प्रति सम्मान भरो।
दानव दल फिर प्रबल ना होए,तुम ऐसा प्रतिकार करो।

 

नही सहिष्णु हमें बनना है,धर्म के प्रति अभिमान भरो।
अपना गौरव याद करो फिर,भारत का नव निर्माण करो।

 

याद करो काशी मथुरा, साकेत ने क्या क्या झेला है।
भोज शिला पे मात शारदे, की प्रतिमा को तोड़ा है।

 

उस पर कर विश्वास पुनः, संतति को क्या दे पाओगे।
पृथ्वीराज बनोगे तो, धोखे से फिर मर जाओगे।

 

ना नफरत करना है तुमको, ना ही रक्त बहाना है।
धर्म के प्रति कट्टर बन करके, हिन्दू धर्म निभाना है।

 

संततियों में ज्ञान भरों, हर अंश मे स्वाभिमान भरों।
मीरा की भक्ति भरी हो तो, मनु सा तेज कटार धरो।

 

तैतीस कोटि हिन्दू देवों को, मन से मत बिसरा देना।
हिन्दू जो मजार पूजता है, उसको जा राह दिखा देना।

 

संयोगिता का हाल बताना,झूठ हटा कर सच बतलाना।
कुछ भी हो जाए पर अपने, धर्म के प्रति आभार जताना।

 

हम आर्यो के वंशज है जो, सकल ज्ञान परिपूर्ण रहे।
अन्तरिक्ष नभ सागर हो या, भू गर्भित अभिषेक रहे।

 

तुम्हे बताना है मूल्यो का अर्जन और विसर्जन भी।
तुम पर भार है भारत के,उज्जवल यश ओज सुदर्शन की।

 

 

??
उपरोक्त कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :- 

अपराजित यायावर हूँ मै | Kavita

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here