अच्छा लगा

( Acha laga ) 

 

अजनबी बनकर गुज़रने का हुनर अच्छा लगा
इस रवय्ये ने दुखाया दिल, मगर अच्छा लगा

दोस्तों को है मुहब्बत मुस्कराहट से मेरी
दुश्मनों को मैं हमेशा चश्म तर अच्छा लगा

जितने भी आसान रस्ते थे न माफ़िक आ सके
ज़िंदगी में मुश्किलों वाला सफ़र अच्छा लगा

तुम भी अब मेरी तरह ही गुम से रहते हो कहीं
तुम पे मेरा कुछ तो आया है असर, अच्छा लगा

आपकी बस आपकी ही रात दिन बातें करूं
आपका अंदाज़ हमको इस क़दर अच्छा लगा

ले रहा है धीरे धीरे अपने अंदर मेरे गम
दिल में उट्ठे इस समंदर का भंवर अच्छा लगा

आए तो कितने हसीं चेहरे नज़र के सामने
हमको इक ही शख्स फ़ैसल उम्रभर अच्छा लगा

 

शायर: शाह फ़ैसल मुजफ्फराबादी
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)
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