अचार..आचार्य

अचार..आचार्य

आचार्य या अचार
आचार्य हमारे जीवन का एक बहुमूल्य हिस्सा होते हैं जीवन में अचार की तरह अपना स्वाद छोड़ जाते हैं l जैसे पूरी थाली सजी हो अचार ना हो………बस तो खाना बेस्वाद लगता है l

कुछ इसी तरह से आचार्य होते हैं मेथी के कड़वे पन रूपी छात्र को , जीरे की ठंडक शीतलता देने वाले छात्र को, मिर्ची की तरह उद्दंड छात्र को, रईसी के तेल में शराबोर छात्र को, जो अपने पैसों के रूआब में सबको डूबा देता है, तो राई की तरह थोड़ा सा खट्टापन देने वाले यानी चुगली करने वाले छात्रों को, तो कभी शक्कर की तरह या गुड़ की तरह मीठे चापलूसी करने वाले छात्रों को कुछ नमक के रूप में होते हैं l

श्रेष्ठतम से श्रेष्ठतम प्रदर्शन करते हैं कुछ हींग होते हैं जो हंसी मसखरी से अपनी उपस्थिति दर्ज कर लेते हैं, अचार में आचार्य स्वयं आम की फाक बनकर, अपना सब कुछ समर्पित करके यानी अपना सर्वोच्च निछावर करके अपनी कमी को जीवन में सदैव महसूस करवाते रहते हैl

जिसके जीवन में आचार्य, अचार बन कर नहीं आते l
वह बड़े होने पर रस स्वादन ही नहीं कर पाता , खट्टे मीठे तीखेपन का महसूस ही नहीं कर पाताl
आचार्य ….अचार के रूप में आज नहीं आए है हमने नानी दादी से सुना है हरि छड़ी से ….
उन्होंने अच्छे अच्छे को सुधार दिया हैl

जिस तरह अचार संतुलित होता है जरा सा रखो थाली में आहा अहा हा, बस उसी को खाने का मन करता है, थोड़े से में ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है पर थोड़ा-थोड़ा …..

अचार में सब व्यवस्थित होता है, आम कड़ा ही रहता है और उसमें सभी राई, जीरा, सोफ, मेथी और हींग और नमक सब कुछ व्यवस्थित रहता है l आचार्य जानते है वैसे ही आचार में, आचरण इसी से बनता है, यह आचार्य अचार के बहाने हमारे आचरण का निर्माण कर देते हैं कहां जाए तो विश्व में सभी के आचरण का निर्माण कर देते हैं कभी आचार्य और विचार तो ऐसे देते हैं , की मुर्दे में भी जान डाल दे …
उनके एक विचार से प्रेरणा ही ले ले तो विवेकानंद बन जाए l

बेशक यह कटु सत्य है सबसे ज्यादा आलोचना उन्हीं की होती है वह बस बालक बालिका के बाल्यावस्था में, जिंदगी भर उसे अचार की महक मरते दम तक सांसों में रहती है l

आचार्य के नियम बड़े सख्त होते हैं मगर सख्त हीं तो आचार्य राघवेंद्र की तरह महाराणा प्रताप को जन्म देते हैं l वह आचार्य ही तो थे चाणक्य जिन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को एक पहचान दी थी l

आचार्य रूपी अचार हमारे जीवन में , होना बहुत जरूरी है जिनके विचार हमें समाज में जीने लायक बनाते हैं , ऐसे आचार्य को आचार्य दिवस की शुभकामनाएं l

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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