आडंबर | Adambar
आडंबर
( Adambar )
पुकारता वह रह गया भाई कोई बचा लो मुझे,
भीड़ व्यस्त थी बहुत किन्तु वीडियो बनाने में!
ठंड में बेहद ठिठुर रहे थे बेतहाशा गरीब,
लोग थे मशगूल फिर भी चादरें चढ़ाने में!
मर गया भूख से अखिर तड़प तड़प कर,
फेंक रहे थे बचा हुआ खाना कूड़ेदान में!
खाली कर दी प्रतिबिंब पर तेल की कई बोतलें,
गरीब पकाता रह गया सब्जी अपनी पानी में!
पर्याप्त ही था चढ़ाते जो दूध एक कलश भी,
सैकड़ों लीटर उंडेल दिए अपनी साख दिखाने में!
नसीब नहीं हुई घी की रोटी भी उसे खाने कभी,
बहा दी इन्होंने नदी अपना रुतबा दिखाने में!
कितना महान कहलाता था गुप्त दान भी कभी,
उसे भी खत्म कर दिया सेल्फी लेने के चक्कर में।
जी सकते थे हम सभी सामान्य सा जीवन भी,
लाखों खर्च कर दिए अपने दिखावटीपन में।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )
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