
ऐसा हो संसार जहाँ पर
आओ मिलकर करें कल्पना हम ऐसे संसार की।
जहाँ भावना त्याग समर्पण प्रेम और उपकार की।।
ऐसा हो संसार जहाँ पर,
सब मिलकरके रहते हो।
एक-दूजे को गले लगाकर
भाई -भाई कहते हो।।
सोच सभी की होनी चाहिए सृष्टि के उद्धार की।
कर्म की पूजा होती हो वहाँ,
मेहनत का फल मिलता हो।
आपसी वार्तालापों से ही,
समस्या का हल मिलता हो।।
जहाँ कदर होती हो केवल उत्तम उच्च विचार की।
मानवता को धर्म मानकर,
जीव की सेवा होती हो।
स्वर्ग-सा संसार बने सब,
दुनिया सुख से सोती हो।।
आपस में सब बोलते हो मीठी भाषा प्यार की।
सहज, सरल, विनम्र, सच्चे,
जिसमें सब इंसान हो।
परोपकार की भावना से जहाँ,
सबका ही कल्याण हो।।
‘विश्वबंधु’ जग हितकारी पद्धति हो प्रचार की।
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कवि: राजेश पुनिया ‘विश्वबंधु’
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बहुत उम्दा सृजन।
बधाई जी।