Aise Dhanteras Manaye
Aise Dhanteras Manaye

ऐसे धनतेरस मनाए

( Aise Dhanteras manaye ) 

 

धनतेरस को भले हर घर धन ना बरसे,
लेकिन कोई भूखा रोटी को ना तरसे!

भले खूब सारे पैसे हमारे घर ना आ पाये,
लेकिन घर से हमारे कोई खाली न जाए।

भले व्यापार में ज़्यादा मुनाफा ना कमाए,
लेकिन किसी के दुख की वज़ह ना बन पाये।

भले ना हो धन की बड़ी जोरदार बारिश,
निःसंतान को मिल जाए बस एक वारिस

इस बार हम कुछ ऐसे धनतेरस मनाए,
दीये की तरह हमारे दिल भी जगमगाए।

इस बार हम कुछ ऐसे धनतेरस मनाए,
लोगों के दिलों में भी अपनी जगह बनाएं।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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