बीवी और मच्छर
( Biwi aur machar )
बीवी के गाल पर मच्छर बैठा था,
मैं बड़ी ही उधेड़बुन में पड़ा था।
समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ,
मच्छर को जाने दूं या उसे मारूं।
तभी बीवी ने मुझे इशारे से बुलाया,
मच्छर मारने का फरमान सुनाया।
ऐसा सुनहरा मौका कैसे छोड़ सकता था,
इसी बहाने मैं हाथ साफ कर सकता था।
सोचा कल तक तो मेरी हुई धुलाई है,
आज देखो किस्मत ने पलटी खाई है।
जैसे ही मच्छर मारने के लिए हाथ उठाया,
वो तो उड़ गया चांटा बीवी को पड़ा करारा।
मेरी तो डर के मारे जान ही निकल गई,
जब बीवी बेलन लेकर पीछे ही पड़ गई।
रूम से भागकर छज्जे पर बैठ गया,
इस तरह मैं तो पीटने से बच गया!
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )